Thursday 10 September 2015

माँ मुझे अख़बार चाहिए.....


तुम ढूंढ रही हो मेरे लिए एक साथी,
जो सुख में, दुख में हर पल मेरा साथ निभाये,
मेरे चेहरे पर पूर्णता का भाव जो लाये,
पर माँ कैसे कहूँ तुमसे,
मुझे नहीं तथाकथित समझदार चाहिये,
माँ मुझे एक अख़बार चाहिये ।।

देखा है मैंने बचपन में तुम्हें फूंकनी फूंकते हुये,
मजदूरों के लिए चूल्हा जलाते हुए,
और देखा है तुम्हें शहर में हमारे लिए दाना लाते हुए,
जो समझ सके इन पीड़ाओं को,
मुझे वो कलमकार चाहिये,
माँ मुझे एक जीता-जागता अख़बार चाहिये ।।

जो पिरो सके मेरे एहर-ओहर बिखरे शब्दों को एक माला में,
मुझे ऐसा एक बौद्धिक रचनाकार चाहिए,
माँ मुझे एक अदद अख़बार चाहिये ।।

न चाहिए विलायती, न शहरी,
न निर्धन, न धनी..
माँ मुझे आज़ादी का विचार चाहिये,
माँ मुझे जीता-जागता अख़बार चाहिये ।।

क़ैद भी रखे ग़र वो मुझे,
घर की चारदीवारी में,
घूँघट में, पल्लू में, पर्दे में, साड़ी में,
पर जो दे मुझे बाहरी दुनिया से सम्पर्क साधने के अवसर,
माँ मुझे बस सूचना का अधिकार चाहिये,
माँ मुझे एक अदद अख़बार चाहिये ।।

डरती रही हूँ देखकर अबतक,
जिन पुरूषों की कामोत्तेजना,
उनकी वासना में हो यदि माँझी सा दृढ़ आधार तो,
ऐसी संलिप्तता बार-बार चाहिये,
माँ मुझे एक अदद अख़बार चाहिये ।।

जो करे कटाक्ष बारम्बार, अपनी कलम की धार से,
जो डरे न, उच्च पदों के पलटते वार से,
निर्भीक हो चलता रहे, लिखता रहे,
जो दे सके धार मेरी भी कलम को,
माँ मुझे प्रोत्साहन का वो औज़ार चाहिये,
माँ मुझे एक अदद अख़बार चाहिये ।।

न बन सकी हूं अब तलक़ मैं वो पत्रकार,
फिर भी फाइव 'डब्लयू', वन 'एच' करते हैं मेरे मन पर प्रहार,
जो समझ सके इस हार्दिक पत्रकारिता की पेंग को,
और खींच सके इसका प्रतिबिम्ब अपने ह्रदय में,
मां मुझे वो अनूठा छायाकार चाहिये ।
मां मुझे एक जीता जागता अख़बार चाहिये ।।

न देना मुझे शादी में व्यवहार के लिफ़ाफे,
न ही दहेज के नाम पर कोई उपहार चाहिये,
माँ मुझे एक जीता-जागता अख़बार चाहिये ।।

पर उस अख़बार में हो संवेदनशीलता,
जो ढकोसलों से दूर हो,
केवल छप जाना ही न हो जिसका धर्म,
अपने काले पुते पन्नों पर जिसे आती हो शर्म,
जो जला सके क्रांति की चिंगारी और बदलाव की बयार,
माँ मुझे वो क्रांतिकार चाहिये,
माँ मुझे एक ऐसा पत्रकार चाहिये,
माँ मुझे एक अदद जीता-जागता अख़बार चाहिये ।।

यदि न मिले अख़बार ऐसा,
तो माँ बस रहने दे मेरे हिस्से तुझ सा सादा जीवन,
और बाबा जैसे उच्च विचार चाहिये,
नहीं चाहिये कोई अख़बार,
माँ मुझे तेरे आंचल में ही संसार चाहिये,
माँ मुझे बस तेरा प्यार चाहिये,
और साथ में अपनी कलम की धार चाहिये।।


 
         

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