Sunday 8 March 2015

जब तक तुम हो, मैं हूँ.....

अजीब इत्तफाक़ है, तुम्हीं ने मुझे कमज़ोर बनाया, डराया,धमकाया,
तुम्हीं मेरे दुश्मन बने बैठे थे ज़माने में,जिसके कारण ज़माने ने मुझे हद में रहना सिखाया,
तुम्हीं थे जिसकी घूरती निगाहों से मैं घबराई थी, चकराई थी,
पर फिर तुम्हीं थे जिसने मेरे लिए आवाज़ उठाई थी, तुम्हीं थे जिसने प्यार से देखा तो मुझे अपनी ख़ूबसूरती का एहसास हुआ,
तुम्हीं थे ,जो मुझे अनदेखा करके निकल गए तो अपनी कमी का आभास हुआ,
तुम्हीं से बचना था और तुम्हारे लिए ही सजना था,
मैं खुला हीरा हूँ जिसे हर कोई चुरा सकता है, उस हीरे के जौहरी भी तुम्हीं थे...
मैं तो सड़क पर पड़ा मिठाई का डिब्बा हूँ जिसे कोई भी कुत्ता नोंच कर खा सकता है, वो कुत्ते भी तुम्हीं थे...
मुझे अवहेलना मिली, तो वो भी तुम्हारी मर्ज़ी थी,
मेरे तन को ग़र तेरा एहसास मिला तो वो भी तेरी ही अर्ज़ी थी,
मेरी रज़ामंदी से कब तूने मुझे पाया, मैंने समर्पण कर दिया तो वो प्यार कहलाया,
और ना किया तो बलात्कार कहलाया....
जब तलक़ दिल किया,जी बहलाया, जब चाहा तब हाथ छुड़ाया,
तेरी ही तारीफ़ से मेरा रंग निखर जाता और जब तेरा लहज़ा बदल जाता तो अभद्र टिप्पणियों का दौर नज़र आता..
तेरे ही साये में मैंने ख़ुद को महफूज़ पाया, तेरे ही गन्दी निगाहों से ख़ौफ खाया...
मेरा तो कुछ था ही नहीं,
जो था सब तुम्हारा था ....ये संघर्ष मेरा कभी था ही नहीं,
ये युद्ध था पुरूष बनाम पुरूष का.....
विरोध भी तुम्हारा था और साथ भी तुम्हारा था....
फिर काहे का महिला दिवस और काहे की बधाई....
आज भी महिलाओं को सम्मान देते हो तो इसलिए कि अच्छे पुरूष कहला सको...
और नहीं देते तो इसलिए ताकि उन्हें दबा सको....
कभी ख़ुशी से, दिल से बराबरी का हक़ दे पाओगे ?
क्या वो तुम्हारा नेतृत्व करे तो सह पाओगे.....
यदि वो तुमसे अधिक सफल हो, तो भी क्या तुम मुस्कुराओगे....
क्या बिस्तर पर उससे पूछोगे,उसकी इच्छाएँ और साथ घटी दुर्घटनायें...
या अब भी सफेद चादर बिछा कर, उस पर तोहमत लगाओगे....
सच चुभ रहा है ना ?  क्या सोच रहे हो नहीं, नहीं मैं ऐसा नहीं हूँ....
तो फिर कैसे हो तुम ? ज़रा मुझे भी बताओ.....अपना हाथ बढ़ाओ....
क्या इस उज्जड महिला का भी सम्मान करोगे तुम ? जो ऐसे बेतुके सवाल करती है ?
जो बेशर्मी से इज़हार करती है.....
अगर तुम्हारा जवाब हाँ है तो – शुक्रिया
क्योंकि तुम्हारे बिना मैं कुछ नहीं......मैं तुमसे ही हूँ.....और संघर्षशील रहूँगी, जब तक तुम हो ।