अधिकांशतः समाज-विज्ञानियों को बारम्बार कला को विज्ञान सिद्ध करने के प्रयास में रत देखा गया है.महान दार्शनिकों और समाज-विज्ञानियों को न जाने विज्ञान से किस प्रकार की प्रतिस्पर्धा रहती है कि समाजशास्त्र हो या दर्शनशास्त्र , इतिहास हो या नागरिकशास्त्र ,भूगोल हो या मानवशास्त्र,कानून हो या नीतिशास्त्र इन सभी सामाजिक शास्त्रों कि तुलना भौतिकी,रसायनशास्त्र,जीव-विज्ञान एवं गणित से करने कि आदत रही है.न जाने क्यों ये समाजशास्त्री कला कि तुलना विज्ञान से कर कर के उसे विज्ञान अर्थात विशेष ज्ञान सिद्ध करने में लगे रहते हैं जो कि सिद्ध करने कि आवश्यकता है ही नहीं क्योंकि कला का भी अपना महत्व है.
यदि वैज्ञानिकों की बात करें तो उन्होंने कभी ये सिद्ध करने का प्रयास नहीं किया कि विज्ञान एक कला है जबकि वास्तविकता में विज्ञान और गणित दोनों ही व्यवहारिक रूप से कला हैं.चाहे गणित की ज्यामिति की बात करें या फिर उदहारण के तौर पर महान वैज्ञानिक न्यूटन का गति विषयक तृतीय नियम (Newton's Third Law Of Motion) जिसे हम "क्रिया-प्रतिक्रिया"(action - reaction) के नाम से जानते हैं यह वास्तव में जीवन के गतिशीलता चक्र का एक अहम् हिस्सा है और जीवन केवल विज्ञान नहीं अपितु कला भी है...जीने की कला और न्यूटन का यह नियम सार्वत्रिक है क्योकि यदि क्रिया होगी तो प्रतिक्रिया अवश्य होगी और यदि प्रतिक्रिया होगी तो पुनः "प्रत्युत्तर क्रिया" होगी और इस प्रकार"जीवन प्रक्रिया" प्रगतिशील होगी.(EVERY ACTION HAS AN EQUAL AND OPPOSITE REACTION.) अतः संतुलन हेतु यह आवश्यक है.
अब यदि बात करते हैं समाज-विज्ञानी मार्क्स की, तो उनके द्वारा प्रतिपादित "इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या" पर विचार करें तो देखते हैं की वहां भी "वाद-प्रतिवाद और अंततः संवाद" की स्थितियों का वर्णन मिलता है . अब यदि न्यूटन बनाम मार्क्स का युद्ध छेड़ दिया जाये की दोनों में बेहतर कौन है तो यह कह पाना कठिन होगा की श्रेष्ठ कौन है ,क्योंकि दोनों का अपना एक महत्व है और इस युद्ध में हानि समाज की ही होगी क्योंकि यदि दो श्रेष्ठतम और महानतम लोग यदि "स्वस्थ वाद-विवाद" नहीं करते तो परिणाम वही होता है जो भारतीय राजनीति में "पक्ष -विपक्ष" होते हुए भी आज तक होता रहा है क्योंकि श्रेष्ठ लोगों ने कभी "स्वस्थ तर्क-वितर्क" में भाग ही नहीं लिया.
देशहित पर राजनीतिक चर्चा करने की बजाय नृत्य की "सुषमा" पर "स्वराज" का अपमान करने के आरोप की "दिग्विजय " पताका आज पक्ष द्वारा फहराई जा रही है,परन्तु तिरंगा न जाने कहाँ लहरा रहा है या सिमटा जा रहा है.
"वाद-विवाद" और "क्रिया -प्रतिक्रिया" का सिलसिला जंतर-मंतर,रामलीला मैदान,प्रेस-कांफ्रेंसों में जूता चलने से लेकर फेसबुक से होता हुआ रेडियो,टी.वी. अखबारों से गुजरता हुआ ,संसद की खाक छानता हुआ अंततः विश्व की सुरक्षा- परिषद् तक जारी है जो की बन चुकी अब एक कैंसर ग्रसित बीमारी है क्योंकि यह "वाद-विवाद"(DEBATE) अब स्वस्थ नहीं रहा.
आज सत्य को सिद्ध करने के लिए भी साक्ष्य की आवश्यकता है और "आवश्यकता अविष्कार की जननी है" और "व्यर्थ की आवश्यकतायें भ्रष्टाचार की जननी हैं" .कल राम ने सीता की पवित्रता की "अग्नि-परीक्षा" ली थी परन्तु आज बदनाम "पारखी सावंत" का स्वयंवर रचाने स्वयं "राम" कपूर बन कर जलने आते हैं और वरों की खोज में परीक्षा रचाते हैं.,,तो वहीँ दूसरी तरफ अग्नि वेश जी अग्नि जलाते नज़र आते हैं.
एक मुद्दे पर दो प्रकार की प्रतिक्रियाएं भी इसी "क्रिया -प्रतिक्रिया" और वाद-विवाद" का कारन हैं.इतिहास के पन्नों पर नरम एवं गरम दल के नाम अंकित हैं परन्तु आज समय "उग्र तथा शांत के एक हो जाने का है और आवश्यकता भी यही है क्योंकि "व्यक्तिगत-हित" से कहीं सर्वोपरि "राष्ट्र-हित" है.आज जब स्वयं दो श्रेष्ठ व्यक्ति "योग" की साधना तथा "समाज सेवा की भावना " को एक कर करीब आते दिख रहे हैं तो हमें भी "गुट -निरपेक्ष" होते हुए एक हो जाने की आवश्यकता है.
अंत में बात करते हैं पत्रकारिता के गिरते हुए स्तर की ,तो ये हम सब ने पढ़ा है कि "साहित्य समाज का दर्पण होता है " और दर्पण कभी झूठ नहीं बोलता. यदि पत्रकारिता पर यह आरोप लगता है की इसका स्तर गिरा है तो इसके लिए हम,आप और ये समाज बराबर का उत्तरदायी है क्योंकि हमने चाटुकारिता के स्तर को बढ़ा कर पत्रकारिता के स्तर को गिराने में सहयोग किया है और ये वही बोलता है जिससे इसकी रोटी सिक जाए और दलील ये देता है की"जो दीखता है वो बिकता है" अन्यथा पत्रकारिता का स्तर तो इतना उच्च है की इसके समक्ष सब कुछ तुच्छ हो सकता है.अतः आज न्यूटन और मार्क्स ,बाबा और हजारे,कला और विज्ञानं और अंततः हमारे और आपके संगम की आवश्यकता है.साथ मिल कर एक हो जाने की आवश्यकता है. अतः मेरा आप सभी से विनम्र निवेदन है की "बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध ले ",स्वस्थ वाद-विवाद","क्रिया -प्रतिक्रिया" तथा "वाद- प्रतिवाद" में सब मिल जुल कर भाग लीजिये तथा अपने देश,अपने समाज और गिरती पत्रकारिता के स्तर को ऊंचा उठाने में सहयोग कीजिये. धन्यवाद.