एक वक़्त हो चला है तेरी महसूसियत से महरूम हुए,
मग़रूर हो तुम या कि मजबूर हो तुम,
हो पास या कि दूर हो तुम,
ऐ नवाब किस बेग़म के नशे में चूर हो तुम,
तुम्हें अपनी माशूक़ा की याद नहीं आती,
ऐ आशिक़-ए-लख़नऊ किस ओर हो तुम ?
दिल में खंजर सा चुभ रहा है , तेरी यादों का दामन,
मेरे जीने का सबब,मेरी ज़िन्दगी का दस्तूर हो तुम,
तुझ से बिछड़ के तहज़ीबो-अदब भी मुझसे रूठ गये,
हम तेरी बाज़ुओं से क्या दूर गये,
मग़रूर हो तुम या कि मजबूर हो तुम,
हो पास या कि दूर हो तुम,
ऐ नवाब किस बेग़म के नशे में चूर हो तुम,
तुम्हें अपनी माशूक़ा की याद नहीं आती,
ऐ आशिक़-ए-लख़नऊ किस ओर हो तुम ?
दिल में खंजर सा चुभ रहा है , तेरी यादों का दामन,
मेरे जीने का सबब,मेरी ज़िन्दगी का दस्तूर हो तुम,
तुझ से बिछड़ के तहज़ीबो-अदब भी मुझसे रूठ गये,
हम तेरी बाज़ुओं से क्या दूर गये,
इसी इंतज़ार में जी रहे हैं हम,
कि मेरे नहीं तो किसी ग़ैर के सही,
पर किसी के आंचल में तो महफ़ूस हो तुम,
ऐ लख़नऊ बड़े दूर हो तुम।
कि मेरे नहीं तो किसी ग़ैर के सही,
पर किसी के आंचल में तो महफ़ूस हो तुम,
ऐ लख़नऊ बड़े दूर हो तुम।