क्योंकि ठोकर....
क्योंकि ठोकरें ही हमें जीना सिखाती हैं....
इस लिए ठोकरें ही हमारी हमराज़ कहलाती हैं.
ग़र इंसान को न मिले ठोकर,तो खुशियों का एहसास क्या होगा ?
ग़र दर्द न हो जीवन में तो अर्थयुक्त जीवन का सार क्या होगा?
क्योंकि इंसान पाता है खोकर,इसलिए सच्ची दोस्त है बस एक ठोकर..
ग़र ये ठोकर न होती तो गिरते न हम ज़मीं पर,
माँ की गोद का स्पर्श न समझते और कहीं पर,
जब लगी चोट पैरों में धरती माँ ने किया आलिंगन,
मुँह के बल गिरे हम माँ की गोद में...
और पाया इस ममता का स्नेही चुम्बन,
दुःख बताया हमने माँ को अपना रोकर,
और बताया ये भी की खायी कैसे ठोकर..
पंछी भी उड़ते हैं जब,अपने परों के बल पर,
टकराते हैं एक दिन वो भी पेड़ों की डालियों पर,
खाते हैं वो भी ठोकर,पातें है वो भी ठोकर..
लेकिन हैं फिर से उड़ते पर्वत की चोटियों पर,
काफी है एक ठोकर,काफी है एक ठोकर..
मकड़ी भी जाल बुनती है जब,ऊंचाइयों पे चढ़कर,
गिरती है फिर है चढ़ती, मकड़ी ज़मीं पे गिरकर..
पाती है वो भी ठोकर,बढती है खा के ठोकर..
ये ज़िन्दगी है ठोकर..ये ज़िन्दगी है ठोकर..
ढूँढोगे ठोकरों में खोकर अग़र तुम जीवन,
तुमको दिखेगा पुलकित धरती का हर एक कण,
बीतेगा तेरा बचपन,आएगी फिर जवानी.....
ये ठोकरें लिखेंगी बस तेरी जिंदगानी..
क्योंकि ठोकरों से ही बनती रही है ..
सफल शख्सों की कहानी...
क्योंकि ठोकर.....क्योंकि ठोकर..."संघर्ष सुन्दरम"