Wednesday 5 March 2014

पन्त जी की आत्मा


जय हे- जय हे- जय हे
शांति अधिष्ठाता
जय -जन भारत...

"प्रथम सभ्यता ज्ञाता
साम ध्वनित गुण गाता
जय नव मानवता निर्माता
सत्य अहिंसा दाता

जय हे- जय हे- जय हे
शांति अधिष्ठाता
जय -जन भारत...


सुमित्रा नंदन पन्त जी कि ये कविता कल  आठवीं में पढ़ने वाली मेरी छोटी बहन जैसी बढ़ती बच्ची को पढ़ाते वक़्त एक घटना घटी - वो पूरी कविता कि व्याख्या समझती रही और जैसे ही मैंने अंतिम दो पंक्तियों के व्याख्या की- जो मुझसे करते नहीं बन रही थी, क्यूंकि अंदर से मुझे भी वही सवाल कचोट रहा था जो अगले ही पल बच्चों ने पूछ ही डाला- हुआ कुछ यूँ कि जैसे ही मैंने कहा नव-मानवता के निर्माता भारत की जय हो,सत्य- अहिंसा का पाठ दुनिया को पढ़ाने वाले, विश्व में शांति की स्थापना करने वाले भारत की जय हो- बच्ची ने कहा- दीदी मानवता मतलब  "Humanity" ना..., मैंने इस सवाल का जवाब हां में दिया ही था कि वहीं पीछे बैठ कर बारहवीं की बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे उसके बड़े भाई ने कटाक्ष मारते हुए कहा- दीदी, भारत मानवता-निर्माता ?, ये किस ज़माने की बात है ? " इतना कह कर वो हंस दिया, वो छोटी बच्ची भी ज़ोरों से हंसने लगी। मैंने कहा- "शायद जब भारत सोने की चिड़िया हुआ करता था, तब की बात है ",और इसके बाद मुस्कुरा कर उन बच्चों के साथ आगे तो बढ़ गई पर इस घटना ने बहुत कुछ कह दिया । जो बच्चे रोज़ अख़बारों में डॉक्टरों की हड़ताल से मरने वालों की बड़ती संख्या की ख़बरें पढ़ रहे हैं, जो बच्चे कुर्सी के लिए नोचा-खसोटी में चले जा रहे सियासी दाव-पेंचों को देख रहे हैं, जो विधायकों को अपनी झूठी शान के लिए सभ्यता की धज्जियां उड़ाते देख रहे हैं, वो इन कविताओं पर हँसेगें नहीं तो और क्या करेंगे ? आख़िर ये कवितायें तो इन सब लोगों ने पढ़ी होंगी जब आज तक किताबों से हटाई नहीं गईं हैं तो....... ख़ैर बच्चों की इस हंसी में भी उम्मीद की एक किरन नज़र आती है क्योंकि ये बच्चे - वो सब समझ रहे हैं, जो शायद हम और आप भी समझ रहे हैं । कुछ लोग बदलाव की कोशिश भी कर रहे हैं लेकिन ख़बरदार मैं किसी आम आदमी की बात नहीं कर रही हूँ । वो कुछ लोग हमारे और आपके बीच के कुछ आमो- ख़ास लोग हैं । आप भी अपने अंदर के ख़ास इंसान की तलाश कीजिेए और पन्त जी की आत्मा को शर्मिन्दा होने से बचा लीजिए ताकि वो ये ना सोचते रह जायें कि हाए मैंने ये क्या लिख दिया !    


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