Saturday 17 January 2015

उम्मीद की धुंधली किरण


कल शाम एक रेस्ट्रां में दो सहेलियाँ बात कर रही थीं। उनमें से एक लख़नऊ से थी और दूसरी दिल्ली से आई थी। लख़नऊ वाली ने पूछा – दिल्ली के क्या हाल हैं ?”  तो दिल्ली वाली बोली – हाल तो बढ़िया हैं, हम दिल्ली वाली लड़कियाँ आज भी स्ट्रेटनिंग कराने में काफी आगे हैं। हमारे स्टाईल और मेकअप के आगे कोई कहाँ टिकने वाला है।” 

इतने पर ही बात काटते हुए लख़नऊ वाली ने कहा – अरे ये सब तो ठीक है पर मौसम का मिज़ाज कैसा है तो वो बोली- यू नो, इट्स टू कोल्ड, लेकिन पॉलिटिकल गहमा-गहमी है।पहली वाली ने कहा–ज़रा खुल के बताओ तो दिल्ली वाली बोली – वो कोई किरण जी ने पॉलिटिक्स ज्वॉइन कर लिया है और लोग कह रहे हैं कि अच्छे दिन लाने में अब वो भी अपना कॉन्ट्रिब्यूशन देंगी।

इतना सुनते ही ये लख़नऊ वाली ख़ुशी के मारे तपाक से बोली –किरण जी, तुम्हारा मतलब मेरी आदर्श किरण जी ! 
दिल्ली वाली लड़की-ओएमजी ! ये एक रिएलिटी शो की जज के नाम पर तुम इतनी ख़ुश क्यों हो रही हो ? इसमें ऐसा भी क्या है

जवाब में लख़नऊ वाली लड़की बोली- अरे यार, अजीब हो, रिएलिटी शो की जज किरण जी तो बहुत पहले से राजनीति में हैं। लगता है तुम्हें अधूरी न्यूज़ पता है । ये तो वो किरण जी होंगी जो मेरी आदर्श हैं। मैं वो लड़की हूँ जो हर उस महिला की शुक्रगुज़ार है जिसने महिलाओं के लिए नये रास्ते खोले । पहली आईपीएस, पहली पर्वतारोही, क्रिकेट टीम की पहली महिला कप्तान, पहली महिला बॉक्सर, और पहली अमुक फलाँ...फलाँ.....। हर लड़की ने अपनी- अपनी रूचि के हिसाब से अपने आदर्श चुन लिए , लेकिन जिन लड़कियों का आईपीएस सेवा से कोई लेना देना नहीं था वो भी किरण जी को आदर्श मानती हैं। लेकिन मुझे उनके एक फ़ैसले पर अफ़सोस हुआ था जब उन्होंने चेहरे से मार्क्समिटाने वाली एक क्रीम का विज्ञापन किया था । उस वक़्त मैंने यही सोचा था कि ऐसी कौन से मजबूरी थी जिसने ऐसे उच्च आदर्शों वाली महिला को एक क्रीम का विज्ञापन करने पर विवश कर दिया था ।

दिल्ली वाली- ओहो, आई गॉट इट , बट ट्रुली स्पीकिंग यार उस क्रीम से तो मेरे चेहरे के मार्क्स, नो – मार्क्स में बदले ही नहीं...तेरी आइडियल ने भी झूठा वादा किया ना । ये सारे पॉलिटिशियन्स होते ही ऐसे हैं ।

लख़नऊ वाली – महोदया आपको कुछ पता भी है, मेरी किरण जी बहुत ईमानदार हैं , कभी बेईमानी नहीं की उन्होंने ।
दिल्ली वाली – क्या वो हमारे झाड़ू और धरना ट्रेंड सेटर से भी ज़्यादा ऑनेस्ट हैं ?
लख़नऊ वाली- जी हाँ,और तुम्हारे धरना कुमार के साथ हर क़दम पर खड़ी थीं हमारी किरण जी।
दिल्ली वाली(इस बार तंज कसते हुए) - अच्छा.... काफी दिन से साथ में ऐसी कोई उम्मीद की किरण दिखी नहीं ।
लख़नऊ वाली-(सोचते हुए..)- वो.....वो....वो तुम्हीं ने तो कहा कि अब वो अच्छे दिन लाने में कॉन्ट्रीब्यूशन देंगी ।
दिल्ली वाली – अच्छा हाँ, याद आया, मैं तो भूल ही गई थी । यस,यस यू आर राइट ।

(लेकिन इस पल में ही लख़नऊ वाली इस लड़की के मन में कुछ खटक सा गया और उसके बाद उसका लहज़ा बदलता चला गया ।)

लख़नऊ वाली- यार देखो, किरण जी चाहे आदर्शवादी और तुम्हारे ट्रेंड सेटर धरना कुमार के साथ खड़ी हों या फिर अच्छे दिन लाने की जुगत में....... कम से कम दोनों ही सूरतों में दिल्ली वालों के दोनों हाथों में लड्डू हैं । क्योंकि ईमानदार तुम्हारा धरना कुमार भी है और मेरी आदर्श किरण जी भी । कम से कम ख़ुशी मनाओ इस बात की , कि अगर वो इन चुनावों में खड़ी होती हैं तो दिल्ली एक बार फिर इतिहास दोहराएगी , बेहतर विकल्पों में टक्कर का इतिहास ।

दिल्ली वाली - यार दिल्ली की पब्लिक धरना कुमार से प्यार तो बहुत करती है लेकिन वोट............मुश्क़िल है । पर मुझे केजू से बड़ी हमदर्दी है। अकेले ही उसने सबकी हवा टाइट कर दी थी । राजस्थान की चीफ मिनिस्टर भी ट्रेंड फॉलो करने लगी थीं, ट्रैफिक़ सिग्नल पर वीआईपी गाड़ियाँ रूकने लगी थीं । बड़े- बड़े मंत्री गाँधी-गाँधी चिल्लाने लगे थे , लेकिन ग़लती केजू की ही है , उसे राजनीति का एक्सपीरिएन्स नहीं था ना , इसलिए उसने दिल्ली की जनता के प्यार और विश्वास में पूरे देश के प्यार और विश्वास की उम्मीद लगा ली.....उसे लगा शायद पूरा देश उसे पसंद करता है ...और फिर दिल्ली तो उसकी अपनी है, उस पर फिर भरोसा कर लेगी और ये सोच कर मेरे केजू ने दिल्ली की कुर्सी का मोह त्याग दिया। कोई और होता तो एक गद्दी तब तक ना छोड़ता जब तक उसे दूसरी नई और बड़ी गद्दी ना मिल जाये । बस यहीं ग़लती हो गई मेरे केजू से......नादान था ना ......जबकि मोटा भाई को ही ले लो...उन्होंने पहले जाल बिछाया...बड़ी कुर्सी का इंतज़ाम किया और उसके बाद छोटी कुर्सी पर अपनी पसंद के मोहरे को बिठा दिया ...और क्या पता इस बार दिल्ली इलेक्शन्स में एक और मोहरा उस बड़ी कुर्सी की ताकतों को कॉन्ट्रीब्यूशन दे दे । काश ! तेरी किरण जी ने मेरे केजू का साथ दिया होता तो शायद आज मेरे केजू की हालत कुछ और होती पर क्या करें आख़िर तेरी किरण जी हैं तो इंसान ही...कुछ एम्बिशंस तो उनकी भी होंगी ना। तेरी किरण जी की असली परीक्षा तो अब होगी कि वो अपनी ज़िन्दगी भर की ईमानदारी की  जमापूँजी को ख़र्च करेंगी और उससे दिल्ली को ख़रीदने की कोशिश की जा सकती है ।

(लख़नऊ वाली लड़की की आंखे फटी की फटी रह गईं कि आख़िर ये दिल्ली वाली फैशनपरस्त लड़की ने इतना सोच कैसे लिया । उसके दिमाग़ में घंटियाँ बजने लगीं। फिर उसने थोड़ा दिमाग़ दौड़ाया और सोचा कि अपनी किरण जी को सही कैसे साबित करे और फिर इस निष्कर्ष पर पहुँची ।)

लख़नऊ वाली लड़की- यार देख, मेरी किरण जी की ईमानदारी पर तो किसी को भी शक़ नहीं है तो अगर उनकी सेना रामसेना निकली तो वो हनुमान की भूमिका में जनता और जनता के सेवक राम की सहायक कहलायेंगी और यदि उनकी सेना रावणसेना निकली तो वो विभीषण की भूमिका में होंगी और अच्छाई का साथ किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेंगी, और इस तरह उम्मीद  की किरण को धुंधली नहीं पड़ने देंगी ।

(ये पूरा वाक़या देखते सुनते मैं 2 कप कॉफी ख़त्म कर चुकी थी । भला हो उस कॉफी का जिसने मुझे बिठाये रखा और उन्हें लगाए रखा ।)

डिस्कलेमर- धार्मिक नामों का उल्लेख प्रतीकों के रूप में किया गया है। किसी की भी धार्मिक भावनाएं आहत करने की लेखक की मंशा नहीं है ।) 

Sunday 11 January 2015

वसुधैव कुटुम्बकम्

देखिए वाइब्रेंट गुजरात सम्मिट चल रहा है । आज से 3 दिन तक चलेगा और इसकी शुरूआत होते ही माननीय प्रधानमंत्री जी ने  वसुधैव कुटुम्बकम् की विचारधारा विश्व के समक्ष रख दी है । वो वहाँ सबका साथ, सबका विकास के नारे दे रहे हैं। अब वो लोग जो ख़ुद को सेक्युलर नहीं मानते पर स्वयं को प्रधानमंत्री का परमभक्त कहते हैं , उन्हें साष्टांग प्रणाम करते हैं । जिन्हें हिन्दुत्व के अतिरिक्त अन्य सभी धर्म एक षड्यंत्र नज़र आते हैं, वो भला कैसे सबका साथ , सबका विकास मानेंगे ? कहीं सबका साथ देते देते किसी अमुक धर्म ने अपने परिवार की संख्या बढ़ा ली तो ?  तो फिर उन परमभक्तों के घर की महिलाओं को भी कम से कम चार बच्चे पैदा करने वाली मशीन बनना होगा । यदि ये न हो सका तो सारे कार्य छोड़कर सबको घरवापसी कराने का काम करना होगा ।

ज़रा सोचिए एक परिवार में क्या होता है जब एक भाई दूसरे से ज़्यादा तरक्की करने लगता है, तो ईर्ष्या और द्वेष जन्म लेते हैं , फिर उस प्रतिस्पर्धा में दूसरा भाई भी मेहनत करता है और इस तरह होता है विकास । जब तक प्रतिस्पर्धा नहीं होगी, विकास कैसे होगा और इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा को जन्म देने के लिए ये भी आवश्यक है कि सम्पूर्ण विश्व को अपना परिवार मान लिया जाये । परिवार वैसे तो समाज की प्राथमिक ईकाई है और एक परिवार , कभी अपने पड़ोसी परिवार की तरक्क़ी से ख़ुश हो ही नहीं सकता जब तक पड़ोसी परिवार की तरक्क़ी से उस प्राथमिक परिवार को कोई लाभ ना हो रहा हो । यदि पड़ोस वाले की तरक्क़ी से अपने चार काम बनते हैं तो हम भी रोआब झाड़ लेंगे । हमसे बहस नहीं एसीपी फलाँ हमारे पड़ोसी, हमारे अच्छे दोस्त हैं, अक़्ल ठिकाने लगवा देंगे ,समझे  

वैसे 7 से 9 जनवरी तक गुजरात में  प्रवासी भारतीस दिवस का आयोजन हुआ और प्रवासियों को निवेश के लिए आकर्षित करने के मक़सद से उत्तर-प्रदेश सरकार ने भी एअर पोर्ट से योजनास्थल तक  यू. पी. राइज़िंग के पोस्टर लगवाये थे , जिसमें उत्तर –प्रदेश में पनप रही संभावनाओं का ज़िक्र था लेकिन सम्मिट शुरू होने से पहले ही गुजरात सरकार ने उन पोस्टर्स को उतरवा दिया । गुजरात सरकार इसे अवैधानिक बता रही है जबकि उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि वो इस आयोजन में बराबर के हिस्सेदार हैं इसलिए उन्हें अपना प्रचार करने का अधिकार है और साथ ही यू.पी. सरकार का कहना है कि सारी कार्यवाही पूरी होने और गुजरात नगर निगम से अनुमति लेकर ही ये पोस्टर्स लगवाये गये थे । उत्तर –प्रदेश के मुख्यमंत्री वैसे तो ख़राब मौसम के चलते इस सम्मिट में शामिल नहीं हुये पर शायद ये भी संभव है कि इस घटना से उनके मिज़ाज का मौसम बिगड़ गया हो । हम कहते हैं चलिये अगर वो पोस्टर वैधानिक नहीं भी थे तो भी गुजरात सरकार दो दिन की अवैधानिकता ही सह लेती, सम्मिट के बाद पोस्टर हटवा लेते , लेकिन नहीं, प्रवासी निवेशकों को भला दूसरे राज्य की तरफ़ आकर्षित कैसे होने देते ! अभी कोई गैंगरेप या मार-पीट की ख़बर होती तो यूपी को सबसे आगे खड़ा कर देते । यही तो है वसुधैव कुटुम्बकम् का आरम्भ , हर बात की शुरूआत अपने घर से ही तो होती है।परिवार का एक सदस्य दूसरे की तरक्क़ी कैसे देख सकता है । आशा करते हैं,वाइब्रेंट गुजरात सम्मिट पूरा होने के बाद घर वालों को भी ये सीख दी जायेगी कि वास्तव में वसुधैव कुटुम्बकम् का अर्थ है क्या।अभी तो मेहमान घर आये हुए हैं तो ज़रा अतिथि देवो भवः की परम्परा निपटा ली जाये, फिर आपस में भी निपट लेंगे ।