मित्रों आज दीपावली है...सारा संसार खुशियाँ मना रहा है. जहाँ भी हमारे भारतीय जन प्रसृत हैं वहां दीपों की छठा दर्शनीय है.,परन्तु आज भी क्या ओजस्विनी खुश है???? जिसके नाम में ही असीमित प्रकाश समाया हुआ है वो आज भी विचलित क्यों हैं? क्या ओजस्विनी इस दीपोत्सव में स्वयं को प्रकाशमान पा रही है ? इससे पहले मैंने आपको ओजस्विनी के मित्र -प्रेम की कथा के एक अंश से परिचित कराया था आज उसकी कहानी का एक और अंश प्रस्तुत है आपके समक्ष .यदि आप उसके पहले के जीवन से रूबरू होने के इक्षुक हों तो आदेश करियेगा.मैं आपके समक्ष उन अंशों का भी वर्णन करुँगी .आएये जानते हैं आज की उसकी मनोदशा उसकी ही ज़बानी...
ओजस्विनी और दीपोत्सव
आज हूँ विह्वल , आज हूँ व्याकुल ,
जग सारा है उज्ज्वल -उज्जवल,
दीपों की है छठा निराली,
सबकी जगमग है दिवाली,
जीवन से सबके तम हरने,
आई है समृद्धि, खुशहाली ,
ओज हूँ मैं,तेज हूँ मैं,
पर फिर क्यूँ निस्तेज हूँ मैं?
मेरी व्याकुलता का रहस्य क्या..
कोई बता दे क्यूँ मैं विस्मृत हूँ?
क्या सच में सब मंगलमय है?
क्या सबके जीवन में अरुणोदय है?
कहीं कोई पैसों से खेले,कहीं किसी को मिलती गाली..
कैसी है ये दिवाली?
देश मेरा क्यूं भ्रष्ट हो रहा?
प्राण मेरा निस्तेज हो रहा...
कहाँ प्रणय-सौंदर्य है मेरा?
आज मेरा क्यूँ ह्रदय रो रहा?
पंछी की कुंजन भी काली..
दिखती नहीं चहक की लाली,
ये कैसी है कहो दिवाली?
मेरा प्रियतम पूछे न मुझको....
वैसे तुम सब भूले मुझको..
अब मुझको तम ही तम दिखता.
महंगाई ने जान निकाली...
सड़कों पर सोई हूँ मैं..
न है ज़मीन पैरों तले ,
न है सर पे छत की थाली ..
तुम्ही कहो सौंदर्य -प्रणय..
तुम बिन कैसे हो दिवाली?
मिटटी के दीपक सूने हैं..
बिन बाती ,बिन घी के खाली...
तुम्ही कहो सौंदर्य-प्रणय मेरे..
तुम बिन कैसे हो दिवाली?
मैं बैठी हूँ इसी प्रतीक्षा में,
तुम आओगे तम हरने को ,
मुझमे नव साहस भरने को ...
चूम लोगे मस्तक को मेरे,
कर लोगे आलिंगन मेरा..
हर लोगे हर विकृति को मेरी..
मेरे आँचल का हर प्राणी जब खुश होगा ,
देश में जब होगी खुशहाली ...
तब होगा मेरा दीपोत्सव
गर्व से कहूँगी मैं ,
मैं तेरी ओजस्विनी हूँ!!!