Friday 30 September 2011

क्योंकि मैं इस बाग़ से प्यार करती हूँ .....

अब भी न जाने क्यों ,सुकूँ मुझे मिला नहीं...
खोया हुआ है अब भी,मेरी रूह का अदब..
की रात चाँद से हस के, थी चांदनी मिली...
फिर भी समझ ना आया ,मातम का कुछ सबब,
सबके दिलों में प्यार की एक आग थी जगी,
पर कौन है जो उस पर पानी गिरा रहा,
हँसते हुये इक बाग को,है क्यों जला रहा ?
कौन है वो, जो खिलने नहीं देता प्यार की कलियों को,
क्यों जलन के काँटे सबको चुभा रहा,
मैं देख नहीं सकती इन फूलों को टूट कर मुरझाते हुये,
इसलिये आज अपना दामन तार-तार करती हूँ......,
क्योंकि मैं इस बाग से बहुत प्यार करती हूँ।