मानव हित कथा (Human
Interest Stories)
भारत में डिजीटल विभाजन
मानव-सभ्यता के
विकास के साथ-साथ ही संचार की प्रक्रिया का भी विकास हुआ और इस प्रक्रिया ने बदलते
वक्त के साथ स्वयं को विभिन्न तकनीकों के साथ समायोजित करते हुए विकास के पथ का
अनुसरण किया। चिन्हों,प्रतीकों के माध्यम से अपने विचारों का आदान-प्रदान करने
वाले इस मनुष्य ने जब शब्दों को सीखा तो उन्हें कागज पर उतारना शुरू किया और
विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के विकास ने जब तकनीकी माध्यमों को जन्म दिया तो आज ऐसा
समय आ पहुँचा है कि जब ये संचार के शब्द और सूचनायें हवा में तैर रहे हैं और
अन्तरिक्ष में वह असीमित तथा अदृश्य स्थान जिसे हम “साइबरस्पेस” कहते हैं,सूचनाओं का
भण्डारण ग्रह बन चुका है। सूचना एवं प्रद्योगिकी क्षेत्र में हुई त्वरित प्रगति ने
एनेलॉग तकनीक से डिजीटल तकनीक की खोज का सफ़र पूरा किया और आज पूरा विश्व इस
डिजीटलीकरण की गोद में समाने को तैयार दिखाई दे रहा है।
क्या है डिजीटलीकरण ?
डिजीटलीकरण अथवा डिजीटाईज़ेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें
किसी भी सूचना अथवा जानकारी का संग्रहण अंकीकरण(digitization) के माध्यम से होता है।
कम्प्यूटर में सूचनाओं को द्विआधारी संखया
पद्धति (two base number system) की सहायता से संरक्षित किया जाता है । इस संख्या पद्धति का आधार
शून्य (0) तथा एक (1) होता है। अतः समस्त सूचनाओं को जब कम्प्यूटर में प्रवेश
कराया जाता है तो वह शब्द हों,चित्र हों अथवा कोई अन्य जानकारी वह सभी को इसी रूप
में अपने स्मृतिकोश में एकत्रित्र कर लेता है। इस तकनीक ने सूचनाओं की गति इतनी
अधिक बढ़ा दी है कि पलक झपकते ही सूचनायें एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँच जाती
हैं।
डिजीटल-विभाजन और भारत
डिजीटल-विभाजन एक ऐसी विचार धारा है जो कि इस बात का समर्थन
करती है कि बढ़ता डिजीटलीकरण “डिजीटल-समरूपक” (digital-equilizer) के रूप में अपनी भूमिका को
निभा पाने में असक्षम रहा है। इसने समाज में डिजीटल-समृद्ध (digitaly-rich) और डिजीटल-दरिद्र (digitaly-poor)
जैसे दो वर्गों का निर्माण कर दिया है और इन दो
समाजों के बीच की खाई दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। भारत जो कि विविधताओं का देश है वह भी बड़ी ही तेज़ी से
सूचना – प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपने क़दम लगातार बढा रहा है और इंटरनेट तथा
मोबाइल का इस्तेमाल करने वाली जनसंख्या लगभग 700 मिलियन तक पहुँच चुकी है। मोबाइल
तो गाँव-गाँव तक पहुँच चुके हैं। भारत – सरकार के प्रयास लगातार इस क्षेत्र में
जारी हैं। “रिमोट-एरिया (पूर्वोत्तर राज्यों और पहाड़ी इलाकों) तथा
ग्रामीण इलाकों तक लोगों को सूचना के दायरे में लाने और डिजीटल- विभाजन की खाई को
पाटने की कोशिश में सरकार ने ग्रामीण
संचार सेवक, ज्ञानदूत ,ई-सेवा प्रोजेक्ट तथा डिजीटल लाईब्रेरी प्रोजेक्ट तथा
विद्या-वाहिनी जैसी योजनायें चलाई हैं।”
भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई मे वर्ष
2004 में एक सुविख्यात तकनीकी संस्थान एनलॉग (Enlog) द्वारा एक प्रोजेक्ट चलाया गया जिसके तहत आस-पास
के ग्रामीण इलाकों को इंटरनेट के माध्यम से विश्व के साथ जोड़ने की योजना बनाई गई।
इस कार्यक्रम की सबसे खास बात यह रही कि इन इलाकों में स्थापित किये जाने वाले बूथ
और साइबर कैफे की कमान महिलाओं के हाथों में दी गई और वो भी ऐसी महिलाओं के हाथों
में जो इससे पहले कभी भी तकनीक के सम्पर्क में नहीं आई थी।
आईआईटी चेन्नई की आशा संजय कहती हैं- “ गाँवों के कुछ हिस्सों
में तो लोग एक गाँव से अगले गाँव तक की बस पकड़ने में भी सक्षम नहीं थे लेकिन
इंटरनेट ने उन्हें दुनिया से जुड़ने का मौका दिया। वे एक क्लिक पर ऐसा कर सकते
हैं। यह बहुत बड़ी बात है।”
आशा संजय के इसी गाँव में वीडियो-कॉन्फ्रेन्सिंग के तहत
महिलाओं की 60 कतारों को हज़ारों मील दूरी पर बैठे नेत्र-विशेषज्ञ (eye-specialist) से जोड़ा गया। अकेले तमिलनाडु में ही लगभग 1,000 साइबर-बूथ उपलब्ध हैं
जिनमें से 80% महिलाओं द्वारा चलाये जा रहे हैं।
एनलॉग के ग्राम आनन्द कहते हैं कि महिलाओं में सीखने और
ग्रहण करने की क्षमता और अपने कार्य के प्रति ग़जब का समर्पण देखने को मिला।
महिला-ऑपरेटर गाँवों के बूथ मे सुबह 6.30 बजे ही पहुँच जाती हैं जबकि शहरों मे हम
अपने कार्यालय 10.00 बजे तक पहुँचते हैं।
21 वर्ष की अनन्ति अपने गाँव में
डिप्लोमा करने और नौकरी पाने वाली एकमात्र महिला हैं जो इस बूथ को चलाकर गर्व का
अनुभव कर रही हैं।
इसी प्रकार 67 वर्षीय रविया मार जो
की मधुमेह से पीड़ित हैं अपने घर पर ही साइबर बूथ चलाकर खुश हैं क्योंकि वह कहीं
जा नहीं सकतीं।
भारत में डिजीटल-विभाजन की
वास्तविकता
इन सभी प्रयासों के बाद भी भारत में
डिजीटल- विभाजन की खाई कम गहरी नहीं है। आज़ादी के समय भारत का साक्षरता प्रतिशत
12% था जो कि अब बढ़कर लगभग 74% तक पहुँच चुका है किन्तु इस
साक्षर जनता में वे लोग भी शामिल हैं जो केवल अपने हस्ताक्षर करना जानते हैं। तकनीकी
शिक्षा की कमी डिजीटल माध्यम से सूचनायें प्राप्त करने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा
है। डिजीटल तकनीक यदि सभी तक पहुँच भी जाती है तो भी भारत की विभिन्न भाषाओं
में सूचनाओं की कमी और भारत की तकनीकी एवं भाषायी(अंग्रेज़ी एवं हिन्दी) रूप से
अशिक्षितता डिजीटल –विभाजन की खाई को निरन्तर बढ़ाती ही नज़र आयेगी।अतः यह आवश्यक
है कि साक्षरता को आँकड़ों में नहीं बल्कि सही मायनों में व्यवहारिक रूप से बढ़ाया
जाये।
यदि ऐसा होता है तब ही मार्शल मैकलुहान
की “विश्व-ग्राम”(global-village) की
परिकल्पना वास्तविक रूप से भारत के संदर्भ में सत्य सिद्ध हो सकेगी और तभी भारत का विश्व-बन्धुता(world-brotherhood) का
सिद्धांत भी वास्तविक रूप से साकार हो सकेगा।
सुन्दरम् ओझा
एम.एस.सी(द्वितीय सेमेस्टर)
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय
पत्रकारिता एवं
संचार विश्वविद्यालय,भोपाल