मिसाल क़ायम करने के लिए कुछ दर्द उठाने पड़ते हैं,
नई राह औरों को देने के लिए , पग अपने जलाने पड़ते हैं,
नये पंख किसी को देने के लिए, पर अपने फैलाने पड़ते हैं....
दांव पर लगाने पड़ते हैं , करने होते हैं कई विरोध,
सहने पड़ते हैं अनेकों प्रतिरोध,
पर हिम्मत, ग़र यूँ तुम हार गये , तो सिर्फ़ नहीं हो तुम हारे...
तुम जैसे कई नवोदित पंक्षी, रूक जायेंगे राहों में.....
पर तुमने अपनी बाधाओं पर , ग़र विजय पताका लहरा दी ,
तो विजय तुम्हारी नहीं , कोटि-कोटि आशाओं की होगी,
नये प्रयासों की होगी, जो रच देगी एक नया इतिहास..
इसलिए कहती हूँ, बन युग-मानव (पुरूष,स्त्री अथवा अन्य अर्थात सभी मनुष्य),
अश्रु तेरे यूँ व्यर्थ नहीं......भावुक होना तो उचित सही, पर रूक जाने का अर्थ नहीं....
दु:ख तो तेरे क्षण भर के हैं, पर जीवन का उद्देश्य नहीं,
चल उठ,तज दे तेरे मन का ये अंतरद्वंद....फिर से कर प्रयास और जीत ले अपने भय अनंत..
ना बेड़ी तुझको बाँध सके,ना पिंजरे में होना तू बंद......देख सलाखें उन क़ैदों की....जिनमें है आज़ादी की चाभी......कर प्रयास और खोल के पिंजरा....तू उड़ जा.....फिर तेरा है सारा आकाश......तब तू कहलायेगा हे युग-मानव.....इस सृष्टि का नवप्रकाश ।। - सुन्दरम
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